बस थोड़ी से हिम्मत, और दुनिया कदमों में,
जो भी उस चमचमाती कोठी को देखता एकटक देखता ही रह जाता शहर के बीचों बीच अपनी शान बिखेरती वह शानदार कोठी बड़े बड़े अक्षरों में अंकित था माया भवन ।
कौन हैं यह माया आइए बताते हैं,
शहर की एक माननीय हस्ती जिनको सभी सम्मान की दृष्टि से देखते हैं।
पर आज से तीस बर्ष पहले मामला बिल्कुल उलट था।
एक साधारण से गाँव में जन्मी माया जिसकी माँ बचपन मे स्वर्ग सिधार गयीं पिता ने दूसरी शादी कर ली ।पर माया की पढ़ाई के प्रति रुचि देखकर साइंस से इण्टर करा दिया ।
कितना मन था वह आगे पढ़ें कुछ बनें पर शहर दूर था आगे पढ़ने के लिए इतनी दूर जाना सम्भव न था।
कभी शहर जाना न हुआ वह 15 साल की हो गयी , सुन रख्खा था पास वाले भइया से जो अक्सर कामकाज के सिलसिले में दो चार रोज में शहर जाते थे।
वही सारे मोहल्ले की जरूरत की चीजें लाकर देते थे।
कितना प्यारा होगा शहर हर तरफ रोशनी, गाड़ी, रिक्शा, कितनी सुन्दर सड़कें कितना अच्छा होगा सब कितना मन करता वह शहर जाए ,एकबार तो देखे उस सुन्दर दुनिया को।
सुनी सुनाई शहरी चकचोंध उसके मन को अपनी ओर खींचती, अक्सर बाबूजी से कहती मुझे भी शहर देखना तो वो कह देते ले चलते किसी दिन, यह दुर्भाग्य रहा माया का से उसी वर्ष पिता भी उसे छोड़ गए , अब कौन था अपना ।
बस सौतेली माँ और दो भाई बहन थे सौतेले जो क्तेभी उसे अपना न मान सके ।
सौतेली माँ ने उसकी शादी तय कर दी ।
उसे क्ईउच्च न पूछा न बताया , बस यह सोचकर खुश थी वह उसका होने वाला पति शहर में रोजगार करता है।
इसी बहाने वह शहर देख लेगी जो बर्षो से उसके आखों में ख़्वाब बनकर पल रहा था।
शादी हो गयी पति के साथ गाँव मे ही रहने लगी, पति का भरा पूरा परिवार काम खूब पड़ता पर पति का स्नेह उसके आगे भारी पड़ जाता था।
पर यहाँ भी माया का दुर्भाग्य आड़े आ गया और शादी के 2 साल के बाद पता चला उसका पति पहले से शादी शुदा है पहली पत्नी के कोई बच्चा नही था इसलिए दूसरी शादी की।
पर यहां भी माया का दुर्भाग्य रहा माया की शादी की 2 साल बाद माया की सौतन की गोद भर गयी उसने एक बेटे को जन्म दिया।
अब माया उसे फूटी आँख न सुहाती।
इधर माया ने भी एक बेटे को जन्म दिया जन्म के दो दिन बाद ही बेटा जो एकदम स्वस्थ था नीला पड़ गया और चल बसा।
माया 2 साल बाद फिर माँ बनी पर दूसरे बच्चे का भी यही हुआ माया ने उसे डॉक्टर को दिखाया तब पता चला बच्चे को कोई विषाक्तपदार्थ दिया गया है।
अब माया का माथा ठनक गया वह पढ़ी लिखी थी सो परिस्थितियों को भांप गयी।
उसने पति से साथ चलने को कहा वो बाहर रोजगार करते थे न नुकर के बाद साथ ले गए।
आज उसका वर्षों का सपना हकीकत हो गया ,जैसा उसने सुना था अपने बचपन मे शहर सच मे बहुत ही खूबसूरत था, बड़ी चौड़ी सड़के, बड़ी बड़ी गाड़ी इक्के रिक्शा।
रात में भी दिन जैसी चकचोंध मन को भा गया शहर का यह सुन्दर रूप।
कई साल वह ससुराल नही आई ,वही उसने एक बेटे को जन्म दिया जो पूणता स्वस्थ था ।
पति ने उसे घर चलने को कहा उसने साफ इन्कार कर दिया मै पहले ही अपने दो बेटों को खो चुकी हूँ इसे खोना नही चाहती।
मै आपको मना नही कर रही ।
पति ने वहीं शहर में उसे किराए के मकान में रख दिया खुद भी साथ रहने लगा।
पर कुछ दिन बाद वह 15 -15 दिन नही आता , माया बजह पूछती तो रोजग़ार का बहाना बना देता।
अब तो वह दो महीने नही आता खर्च भी बंद कर दिया, अब
तो बिल्कुल तल्ला ही छुड़ा लिया ।
अब इस शहरी दुनिया मे कोई भी न पूछता सबको अपने काम से काम,
आज पता चला यह शहरी दुनिया हमारे साधारण गांव से कितनी छोटी और खोखली है।
यह चकचोंध बस दिखावे की है, गाँव जैसे अपने पन से काफी दूर यहाँ
हर तरफ मशीनों के बीच रहकर इंसान भी मशीन बन गया है जिसे किसी के जज्बों से , परेशानी से कोई हमदर्दी नहीं।
कोई हमदर्दी करता भी तो उसके बदले में अपनी इच्छापूर्ति चाहता था।
माया के सुन्दर शरीर और 25 साल की उम्र को देखकर कोई भी उसपर लाखों लुटा देता ,परन्तु माया को नही चाहिए थे यह सुख जो उसकी आत्मा का बोझ बन जाएं
शहर के जीवन से तालमेल बिठाने का साहस नही कर पा रही थी माया, अपनी भूख तो छिपा जाती पर 2 साल का बेटा जब भूख से रोने लगा माया अपने दुर्भाग्य को कोसती अपने लिए बेबस महसूस करती।
आज बेटे को रोते देख एक नई माया का जन्म हुआ ,
एक दिन एक मुंह बोले भाई ने उसे परेशान देखकर बजह पूछ ली , तो माया ने सारा सच बता दिया।
फिर उसने मोहल्ले के कुछ घरों में काम दिलवा दिया। उसमे एक महिला अध्यापिका थी वह पढ़ाने जाती माया उनका घर सभालती ।
एक दिन बातों बातों में माया ने बताया वो भी काफी पढ़ी लिखी है
सुनकर वह महिला अध्यापिका दंग रह गयीं अरे इतना पढ़ीलिखी होकर तुम अपने को दुर्भाग्यपूर्ण बता रही हो तुम्हारे पास शिक्षा जैसा शसक्त हथियार है उसका उपयोग करो अपनी इस बिवसता पर आँसू बहाना बन्द करो।
तुम खुद सक्षम बनो किसी से उम्मीद मत करो जब तक तुम खुद में साहस नही भरोगी यों ही भाग्यहीन बनी रहोगी।
उनकी बातों का माया को प्रेरित किया उसने उनकी सहायता से बी. टी सी का फार्म भरा पढ़ाई काम दोनों किए ।
कल तक जो माया सड़क पार करने से डरती थी, आज सजग हो हर राह पर चल रही थी पूरे आत्मविश्वास के साथ इसी आत्मविश्वास संघर्ष का परिणाम यह हुआ,
वह उतीर्ण हो गयी छे महीने की ट्रेनिंग के बाद वह एक सरकारी अध्यापिका बन गयी कभी अपने जिस भाग्य को वह दुर्भाग्यपूर्ण बताती थी उसे अपने कर्म से बदल दिया और अपने हाथों खींच ली अपने हाथ मे सौभाग्य की रेखा।
फिर कभी न तो अपने पति के घर गयी न पलटकर दुर्भाग्य को कोसा।
अपने कर्म से उसने अपना खोया हुआ मान सम्मान सब पा लिया।
आज सेवानिवृत्त हो अपने लेक्चरर बेटे के साथ रह रहीं हैं।
अगर वह भाग्य के भरोसे रहती और साहस न करती तो शायद तमाम जीवन आभाव में बीत जाता।
आज वह अपने लिए ही नहीं औरों के लिए भी प्रेरणा का विषय थी।
और एक जीवन के मैदान में संघर्ष करके सफल नायिका बन गयी थीं, अपने धैर्य साहस की बजह से ।
पर वह एकबात जान गई थी यह शहरी करण क् आकर्षक माहौल मात्र एक दिखावा और छलावा है।
चाहें शहर हो या गाँव हम अपने संघर्षों से अपने भाग्य की रेखा बदल सकते हैं, वही कर दिखाया माया ने
ईश्वर ने मनुष्य को सृष्टि का सबसे बुद्धिमान प्राणी बनाया है अन्य प्राणियों से उसे अधिक बुद्धि विवेक प्रदान किया है समस्या के समय भाग्य के भरोसे ना रहकर हमें अपने उसी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करके अपनी बड़ी से बड़ी समस्या का निदान मिल सकता है।
भाग्य यूं ही नहीं बदलता उसे बदलने के लिए हमें स्वता ही प्रयत्नशील होना पड़ता है जैसे थाली में सजे विभिन्न प्रकार के भोजन हमारे सामने रखे हैं पर जब तक हम उन्हें हाथ से प्रयास कर नहीं खाएंगे वह स्वतः ही हमारे मुख में नहीं आएंगे इसीलिए जीवन में प्रयासरत रहिए।
श्रम ही सफलता की पूंजी है ,
प्रयासरत रहिए सफलता अवश्य मिलेगी।
🤫
20-Sep-2021 11:18 PM
बेहतरीन प्रेरक कहानी...!कर्म प्रधान है।
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